NTA-NET (UGC-NET) Music (16) Applied Theory-Detailed and Critical Study of Ragas Study Material (Page 21 of 52)
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Pilu
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- स्वर आरोह में रिषभ व धैवत वर्ज्य। दोनों गंधार, दोनों धैवत व दोनों निषाद। शेष शुद्ध स्वर। जाति औढव - सम्पूर्ण। थाट काफी। वादी/संवादी गंधार/निषाद। समय दिन का तीसरा प्रहर। विश्रांति स्थान सा; ग; प; नि; - नि१; प; ग१;
- मुख्य अंग ग म प नि सा′; नि१ ध प; म प नि ध१ प; म ग१ रे सा; प ग१ रे सा , नि; सा ग१ रे सा;
- आरोह-अवरोह सा ग म प नि सा′ - सा′ नि१ ध प म ग१ रे सा; , नि सा ग१ रे सा; । विशेष - , प , नि सा ग१; ग१ रे सा , नि; , नि सा - यह राग पीलू की राग वाचक स्वर संगती है। इस राग में कोमल गंधार और मन्द्र सप्तक के शुद्ध निषाद पर विश्रांति दी जाती है, जिससे पीलू राग एकदम प्रदर्शित होता है। इस राग में कोमल निषाद के साथ धैवत शुद्ध और शुद्ध निषाद के साथ ध…
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Sindhura
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- स्वर आरोह में गंधार व निषाद वर्ज्य। अवरोह में गंधार व निषाद कोमल। शेष शुद्ध स्वर। जाति औढव - सम्पूर्ण। थाट काफी।वादी/संवादी षड्ज/पंचम।समय दिन का चतुर्थ प्रहर। विश्रांति स्थान सा; प; ध; - सा ′ ; ध; प; ग१; । मुख्य अंग रे म प ध; नि१ ध प सा ′ ; रे′ ग१′ रे′ सा′; नि१ ध प म ग१ रे; म ग१ रे सा; । आरोह-अवरोह सा रे म प ध सा′ - सा′ नि१ ध प म ग१ रे म ग१ रे सा; । विशेष - यह एक चंचल प्रकृति का राग है जो की राग काफी के बहुत निकट है। राग काफी से इसे अलग दर्शाने के लिए कभी कभी निषाद शुद्ध का प्रयोग आरोह मे…
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