NTA-NET (UGC-NET) Music (16) Applied Theory-Detailed and Critical Study of Ragas Study Material (Page 16 of 52)

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Jaunpuri

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  • स्वर आरोह में गंधार वर्ज्य। गंधार, धैवत व निषाद कोमल। शेष शुद्ध स्वर। जाति षाढव - संपूर्ण
  • थाट आसावरी। वादी/संवादी धैवत/गंधार। समय दिन का दूसरा प्रहर। विश्रांति स्थान रे; प; ध१; सा ‘; - ध१; प; ग१; रे; । मुख्य अंग रे म प; ध१ म प सा’ ; रे′ नि१ ध१ प; म प नि१ ध१ प; ध१ म प ग१ रे म प; । आरोह-अवरोह सा रे म प ध१ नि१ सा′ - सा′ नि१ ध१ प म ग१ रे सा; । विशेष - राग जौनपुरी दिन के रागों में अति मधुर व विशाल स्वर संयोजन वाला सर्वप्रिय राग है। रे रे म म प - यह स्वर अधिक प्रयोग में आते हैं और जौनपुरी का वातावरण एकदम सामने आता है। वैसे ही ध म प ग१ - इन स्वरों को मींड के साथ लिया जाता है। इस राग में धैवत तथा गंधार इन स्वरों को आंदोलित करके लेने से राग का माधुर्य और भी बढता है।
  • इस राग के पूर्वांग…

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Jaijaivanti

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  • स्वर आरोह में गंधार व धैवत वर्ज्य। निषाद व गंधार दोनों। शेष शुद्ध स्वर। जाति औढव - सम्पूर्ण वक्र
  • थाट काफी। वादी/संवादी रिषभ/पंचम। समय रात्री का दूसरा प्रहर। विश्रांति स्थान सा रे प नि - सा′ प रे। मुख्य अंग , ध , नि१ रे s; रे ग१ रे सा; , नि सा; रे म प नि; नि१ ध प; । आरोह-अवरोह सा , ध , नि१ र…

… (1705 more words) …

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