NTA-NET (UGC-NET) Hindi (20) काव्यशास्त्र और आलोचना (Poetics and Criticism)-अलंकार (Alankar) Study Material (Page 2 of 5)

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मुख्य अर्थालंकार

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कवि जब वणर्य (जिस वस्तु का वर्णन करना हो) वस्तु के किसी गुण या विशेषता को गहनता से अनुभव करता है तो वह अप्रस्तुत का विधान करता है और अपने कथ्य को प्रभावशाली ढंग से और स्पष्टता के साथ प्रस्तुत करता है। किसी का सुंदर मुख देखकर ‘मुख सुंदर है’ कहने से उसकी विशेषता का आभास नहीं होता। उसके लिए कवि जब कहता है ‘मुख कमल के समान सुंदर है’ अथवा ‘मुख चाँद जैसा लगता है’ तो उसका प्रभाव बढ़ जाता है। इस प्रकार अप्रस्तुत का विधान अर्थालंकार के माध्यम से किया जाता है। इससे अर्थ में समृद्धि उत्पन्न होती है। हजारी प्रसाद दव्वेदी का कहना है कि अर्थालंकार उस वक्तव्य को गाढ़ भाव से अनुभव करने में सहायक होते हैं। यहाँ कुछ मुख्य अर्थालंकारों का परिचय दिया जाता है।

उपमा-जहाँ किसी वस्तु की तुलन…

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भारतीय काव्यशास्त्र की रूपरेखा

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प्रस्तावना (Preface)

भारत में काव्यशास्त्रीय चिंतन की परंपरा दो हजार वर्ष से अधिक पुरानी है। इसका पहला उपलब्ध प्रमाण ऐतरेय महीदास द्वारा प्रणीत ऐतरेय ब्राहमण में दिखाई पड़ता है। ऐतरेय ब्राहमण का अनुमानित समय ईसा पूर्व एक हजार के आस-पास माना गया है। इसके उपरांत भरत मुनि के नाट्‌यशास्त्र के आविर्भा…

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