NTA-NET (UGC-NET) Hindi (20) हिन्दी साहित्य का इतिहास (History of Hindi Literature)-रीतिकाल (Ritikal) Study Material (Page 2 of 25)
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रीतिकाल का संप्रदाय, काव्य, श्रृंगारकाल और अवधि
- संप्रदाय:-इन रीतियों का समावेश ही काव्य को जीवित बनाता है। आगे चलकर ध्वनि संप्रदाय में ‘ध्वनि’ को प्रतिष्ठा दी। अलंकार और वक्रोक्ति संप्रदाय अलंकार तथा उक्ति-वैचित्र्य को काव्य की आत्मा मानते हैं। रस संप्रदाय ‘वाक्य रसात्मक काव्यम्’ कहकर रस को ही काव्य की आत्मा स्वीकार करता है।
- काव्य कला काल:- शुक्लजी से मात्र 2 वर्ष बाद ही, पं. रामाशंकर ′ रसाल ′ ने इस काल को ′ काव्य कला काल ′ की संज्ञा प्रदान की और कहा, “काव्य कला-काल …
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केवल रीतिकालीन (काव्य) साहित्य का विभाजन व विभिन्न परिस्थितियाँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल रीतिकाल साहित्य का सर्वप्रथम सशक्त विभाजन किया था। जिन्होंने मुख्यत: इसको वर्ण्य विषय के आधार पर दो वर्गों में रखा- रीतिबद्ध और रीतिमुक्त। रीतिमुक्त कवियों (या काव्य) को उन्होंने सात उप-वर्गों में रखा था। प्रमुख विभाजन तो आजकल भी ज्यों या त्यों स्वीकार किया जाता है, किन्तु उप-विभाजन पर आज आपत्ति ही नहीं उठाई जाती, नये-नये…
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