NTA-NET (UGC-NET) Hindi (20) हिन्दी साहित्य का इतिहास (History of Hindi Literature)-छायावाद और उसके बाद (Chhayavaad and Later) Study Material (Page 9 of 11)

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प्रयोगवाद में पपद्यवाद

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  • सन्‌ 1952 में बिहार के तीन कवियों नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार तथा नरेश ने प्रयोगवाद की विशिष्टता पर बल देकर इसे ‘पपद्यवाद’ नाम दिया उनके नामों के प्रथम अक्षर के आधार पर इसे ‘नकेनवाद’ भी कहा जाता हैं।
  • पपद्यवाद में बल ‘शब्द’ पर है ‘अनुभूति’ पर नहीं। इसलिये कवि पुराने शब्दों को नया अर्थ देने के साथ-साथ नए शब्दों का निर्माण भी कर रहा है। यह साधारणीकरण में विश्वास नहीं करता बल्कि ‘विशिष्टीकरण’ को काम्य मानता है।
  • पपद्यवाद प्रयोगवाद से अनेक स्तरों पर भिन्न है।…

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प्रयोगवाद का आरंभ व पत्रिका

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  • प्रयोगवाद का जन्म-प्रथम और दव्तीय विश्वयुद्ध के भयंकार नरसंहार ने यूरोप के युवा साहित्यकारों के मन को झगझोढ़ कर रख दिया। उन्होंने साहित्य में नए प्रयोग किए। उस प्रकार प्रयोगवाद का जन्म हुआ। भारत भी इस प्रभाव से अछूता न रहा। 1943 में दव्तीय महायुद्ध के अंतिम सत्र में एक नई विचारधारा का सूत्रपात हुआ। सच्चिदान्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय ने मंद सप्तक और तार सप्तक नामक काव्य संग्रह प्रकाशित किए। यह प्रयोगवादी आंदोलन का घोषणापत्र था, किन्तु इसमें प्रयोगवाद की चर्चा नहीं की गई थीं। इन कवियों ने छायावाद की रूमानियत और प्रगतिवादी कवियों दव्ारा की गई कला की उपेक्षा के प्रति अपना रोष प्रकट किया है। भाव, विचार, छंद, प्रतीक, अलंकार, अभिव्यक्ति आदि सभी दृष्टि से इस कविता में नवीनता है।
  • साहित्य का सृजन-काव्य के माध्यम से …

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