IAS (Admin.) Mains Hindi Literature Kabir-Kabir Granthawali Study Material (Page 4 of 6)

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तुलसीदास जी की चौपाईयों की व्याख्या

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चौपाई:-

कररूँ कृपानिधि एक ढिठाई। मैं सेवक तुम्ह जन सुखदाई।।

संतन्ह कै महिमा रघुराई। बहु विधि बेद पुरानन्ह गाई।।

श्री मुख तुम्ह पुनि कीन्ही बड़ाई। तिन्ह पर प्रभुहिं प्रीति अधिकाई।।

सुना चहऊँ प्रभु तिन्ह लच्छन। कृपासिंधु गुन गायन बिचच्छन।।

स्तं असंत भेद बिगलाई। प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई।।

संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान विख्याता।।

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कृत ′ रामचरितमानस के प्रसंगो की व्याख्या

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प्रसंग-

तेहिं मम पद सादर सिरु नावा। पुनि आपन संदेह सुनावा।।

सुनि ता करि बिनती मृदु बानी। प्रेम सहित मैं कहेउँ भवानी।।

मिलेहु गरूड़ मारग महँ मोही। कवन भाँति समुझावौं तोही।।

तबहिं होइ सब संसय भंगा। जब बहु काल करिअ सतसंगा।।

सुनिअ तहाँ हरि कथा सुहाई। नाना भाँति मुनिन्ह जो गाई।।

जेहि महुँ आदि मध्य अवसाना। प्रभु प्रतिपाद्या राम भगवाना।।

नित हरि कथा होत जहँ भाई। पठवउँ तहाँ सुनहु तुम्ह जाई।।

जाइहि सुनत सकल संदेहा। राम चरन होइहि अति नेहा।।

दो. बिनु सतंसग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग।

मोह गएँ बिनु राम पद होई न दृढ़ अनुराग।।

  • प्रसंग-प्रस्तुम काव्यांश गोस्वामी तुलसीदास दव्ारा रचित ′ रामचरितमानस ′ के …

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