IAS (Admin.) Mains Hindi Literature History of Hindi Literature-Literary Trends of the Following Four Periods of History of Hindi Literature Study Material (Page 53 of 178)

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छायावाद की विशेषताएँ

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छायावाद का जन्म

इस समय तक हिन्दी भाषा में प्रौढ़ता आ चुकी थी। कवीन्द्र रवीन्द्र भारतीय साहित्याकाश में दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह उदित हो चुके थे। उनकी गीताजंलि (बांगला में लिखित) देश के साहित्यकारों के लिए प्रेरणा-बिन्दु बन गई थीं।

छायावाद का जन्म प्रसाद के काव्य आँसू (1927) से माना जाता है। सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग मुकुटधर पाण्डेय ने किया था। छायावाद को ‘मिस्टिज्मि’ (घना) के अर्थ में प्रयुक्त किया गया था। प्रारंभ में छायावाद व्यंग्यार्थ में प्रयोग किया गया था। परन्तु छायावादी कवियों ने इसे सहर्ष स्वीकार किया।

छायावादी काव्य गीतांजलि की विशेषताएँ

  • व्यक्तिगत स्वाधीनता की भावना
  • रहस्यात्मकता
  • रोमांटिक प्रेमभावना उन्मुक्त ओर गतिशील प्रकृति के आलंबन रूप
  • प्रकृति से साहचर्य प्रेम
  • अतीततोन्मुखता
  • स्वच्छंद कल्पना
  • नारी के श्रदव्ेय रूप …

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छायावाद के कवि - जयशंकर प्रसाद

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छायावाद के प्रमुख कवि- छायावाद के चार स्तंभ कहे जाते हें।

जयशंकर प्रसाद (1889 - 1937 ई.) -प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के कवि थे। उन्होंने साहित्य के विभिन्न अंगो नाटक, कविता, उपन्यास कहानी, निबंध आदि में रचना की। झरना इनकी प्राथमिक काव्य-रचनाओं में गिनी जाती हैं। आँसू काव्य ने उन्हें छायावादी कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया।

उनकी रचनाएँ निम्न हैं-

  • महाकव्य- कामायानी
  • खंडकाव्य- महाराणा का महत्व, , प्रेमपथिक, आँसू
  • काव्य-रूपक- करूणालय
  • गीतिकाव्य- कानन कुसुम, झरना, चित्राधार, लहर आदि।
  • नाटक- चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, …

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