IAS (Admin.) Mains Hindi Literature History of Hindi Literature-Literary Trends of the Following Four Periods of History of Hindi Literature Study Material (Page 123 of 178)

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व्याख्या सूरदास ‘भ्रमरगीत सार’ Part - 1

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गोकुल सबै गोपाल उपासी।

जोग अंग साधत जे ऊधे ते सब बसत ईसपुर कासी।।

यद्यपि हरि हम ताजि अनाथ करि तदपि रहति चरननि रस रसी।।

अपनी शीतलता न छाँड़त यद्यपि है ससि राहु गरासी।।

का अपराध जोग लिखि पठवत प्रेम भजन तजि करत उदासी।

सूरदास ऐसी को बिरहनि , माँगति मुक्ति तजै गुनरासी।।

  • प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश ‘भ्रमरगीत सार’ से उद्धृत हैं। इसके रचनाकार सूरदास हैं जो कृष्ण भक्ति काव्यधारा के मूर्धन्य कवि हैं इनके काव्य में ब्रजभाषा का सौष्ठव अत्यंत परिष्कृत रूप में उपलब्ध होता है।
  • संदर्भ-उद्धव, गोकुल में सभी नर-नारी गोपाल कृष्ण के उपासक हैं अत: उ्‌धव के प्रति गोपियाँ कहती हैं-
  • व्याख्या-कृष्ण के सखा उद्धव गोकुल आकर गोपिय…

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व्याख्या सूरदास ‘भ्रमरगीत सार’ Part - 2

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प्रीति करि दीन्ही गरे छुरी।

जैसे बधिक चुगाय कपटकन पीछे करत बुरी।।

मुरली मधुर चेंपकर, कांपों मोर चन्द्र ठटबारी।

वंक बिलोकनि लूक लागि बस सकी न तनहिं सम्हारी।।

तलफत छांड़ि चले मधुबन को फिरि कै लई न सार।

सूरदास व कलप तरोवर फेरि न बैठी डार।।

  • प्रसंग- पूर्ववत वही
  • संदर्भ-कृष्ण के विश्वासघात का वर्णन और उससे उत्पन्न गोपियों की कारूण…

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