IAS (Admin.) Mains Hindi Literature History of Hindi Language and Nagari Lipi-Standardisation of Hindi Bhasha Study Material (Page 2 of 4)

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नागरी लिपि का विकास और उसका मानकीकरण

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  • प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि होती है जिसमें उस भाषा को लिखा जाता है। ध्वनि संकेतो के लिखित रूप को लिपि कहते हैं। हिन्दी नागरी या देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। अंग्रेजी, रोमन लिपि में, उर्दू फारसी लिपि में तथा पंजाबी, गुरुमुखी लिपि में लिखी जाती है। भारत के दो प्राचीन लिपियाँ ब्राह्यी लिपि और खरोष्ठी लिपि थीं। आगे चलकर ब्राह्यी लिपि से ही देवनागरी लिपि का विकास हुआ है।
  • देवानागरी लिपि संस्कत, प्राकृत अपभ्रंश, हिन्दी, मराठी, नेपाली आदि भाषाओं में लिखने की लिपि है। देवनागरी लिपि का समुचित विकास 8वीं शताब्दी में हुआ। तात्कालिक स…

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देवनागरी लिपि में सुधार और संशोधन

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समय-समय पर देवनागरी लिपि में सुधार और संशोधन के जो प्रयास किए गए, उन्हें ही देवनागरी का विकास कहते हैं। इस संबंध में निम्न तथ्य उल्लेखनीय हैं-

  • सबसे पहले महादेव गोविन्द रानाडे दव्ारा लिपि सुधार समिति गठित की थी।
  • महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुणे दव्ारा लिपि सुधार योजना बनाई।
  • 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में बाल गंगाधर तिलक ने अपने समाचार-पत्र ‘केसरी’ में लिपि सुधार की व्यापक चर्चा की है। इसी विकास क्रम में आगे चलकर वीर सावरकर, महात्मा गांधी, विनोबा भावे, काका कालेलकर और आचार्य नरेन्द्र देव ने लिपि में सुधार एवं संशोधन के प्रयास किए है।
  • काका कालेलकर ने ‘अ’ की बारहखड़ी का सुझाव देकर स्वर ध्वनियों की संख्या कम कर दी। यथा-अ, आ, आदि
  • डॉ. श्यामसुन्दर दास ने सुझाव दिया कि पंचम वर्ण के स्थान पर केवल अनुस्वार …

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