IAS (Admin.) Mains Hindi Literature History of Hindi Literature-Tradition of Writing History of Hindi Literature Study Material (Page 5 of 49)

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काव्य प्रयोजन

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  • काव्य प्रयोजन- काव्य की रचना किसी प्रयोजन अथवा उद्देश्य को लेकर की जाती हैं। निरुद्देश्य या निष्प्रयोजन रचना अस्थाई और निर्मूल्य होती हैं संस्कृत के प्राचीन आचार्यो ने चतुवर्ग अर्थात धर्म अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति को काव्य का प्रयोजन माना। काव्यालंकार के प्रणेता भामह ने माना है कि काव्य-रचना से कवि को और उसका अध्ययन करने से पाठक को धर्म, अर्थ काम तथा मोक्ष प्राप्त होता है। मम्मट ने अधिक स्पष्टता से काव्य-प्रयोजन के संबंध में बताया है

काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये।

सद्य: परिनिवृतये कान्ता-सम्मित तपोपदेशयुजे।।

अर्थात काव्य यश की प्राप्ति, संपत्ति का लाभ, सामाजिक व्यवहार की शिक्षा, दु: खों का विनाश…

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पाश्चात्य सिद्धांत

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  • प्रसिद्ध दर्शन-शास्त्री हीगल कला के पक्ष, धर्म को विपक्ष तथा दर्शन को कला और धर्म का मिला-जुला रूप मानता है।
  • क्रोचे का सिद्धांत -प्रसिद्ध कला- मीमांसक इटलीवासी क्रोचे अपने ग्रंथ ‘सौंद्रर्य शास्त्र’ में धर्म को कला का विरोधी नहीं मानता है।
  • क्रोचे का सिद्धांत काव्य में ‘अभिव्यंजनावाद’ के नाम से प्रसिद्ध है। वह कला में परंपरावाद का विरोध करता हैै। और शक्तिवाद पर जोर देता है। उसका मत है कि कवि अपनी सहज अनुभूति को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करें यह आवश्यक नहीं। क्रोचे की दृष्टि में मानस काव्य ही कवि के लिए सच्चा काव्य है। इसको वह आतंरिक अभिव्यंजना मानता है। क्रोचे इसका कला के साथ संबंध मानता है। इसको उसने मुक्त प्रेरणा कहा है…

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