IAS (Admin.) Mains Hindi Literature History of Hindi Literature-Literary Trends of the Following Four Periods of History of Hindi Literature Study Material (Page 119 of 178)

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भारतेन्दु

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भारतेन्दु हरिश्चंद्र एक महान युग निर्माता साहित्यकार थे। आधुनिक नाटक को इस रूप में लाने का श्रेय भारतेन्दु को ही दिया जाता है। भारतेन्दु पहले नाटकाकार थे जिन्होंने गद्य को अपनाकर प्राचीन और नवीन शैली का सामंजस्य किया। भारतेन्दु ने 18 नाटकों की रचना की जिसमें अनूदित, रूपांतरित और मौलिक तीनों प्रकार के नाटक सम्मिलित हैं। इनका विवरण इस प्रकार है।

अनूदित नाटक-

  • रत्नावली नाटिका- यह थानेश्वर के राजा श्री हर्ष कृत, संस्कृत नाटक रत्नावली का अनुवाद है।
  • पांखड-चिंडबन-कृष्ण मिश्र कृत ‘प्रबोध चंद्रोदय’ नाटक के तीसरे अंका का अनुवाद है। गद्य-पद्य युक्त छोटी सी रचना है।
  • धनंजय-विजय- संस्कृत के इसी नाम से नाटक का गद्य-पद्य अनुवाद है। इसमें पांडवों के अज्ञातवास की कथा दी गई है। जब दुर्योधन दव्ारा …

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‘पदमावत’ व्याख्या (नागमती वियोग-खण्ड)

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नगमती चितउर पंथ डेरां पिउ जो गए फिरि कीन्ह न फेरा।

नगरि नारि काहूँ बस परा। तेहँ बिमोहि मोसौं चितु हरा।

स्वुा काल होई लै गा पीऊ। पिउ नहिं लेत लेत बरु जीऊ।

भएउ नरायण बावन करा। राज करत बलि राजा छरा।

करन बान लीन्हेउ करि छंदू। भर्थरि भएउ छल मिला अनंदू।

मानत भोग गोपीचँद भोगी। लै उपसवा जलंधर जोगी।

लै कान्हहि भ अकरूर अलोपी। कठिन बिछोह जिअै किमि गोपी।

सारस जोरी किमि हरी मारि गएउ किन खग्नि।

झुरि झुरि पांजरि धनि भई बिरह कै लागी अग्नि।।

  • शब्दार्थ- फेरा- वापसी। नागरि- चतुर नायिका। करा- कला। करन-राजा कर्ण। झुरि-सूखकर।
  • प्रसंग- प्रस्तु…

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