IAS (Admin.) Mains Hindi Literature: Questions 1 of 76

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आदिकालीन साहित्य की परिस्थितियों की चर्चा करो?

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Explanation

  • इस काल के साहित्य में जो प्रमुख विशेषताएं उपलब्ध हो रही हैं, वे तदयुगीन परिस्थितियों से विकसित हुई हैं।
  • आचार्य शुक्ल के अनुसार- संवत 1050 वि० से लेकर संवत 1375 वि० तक हिंदी साहित्य का आदिकाल माना जा सकता है।
  • डॉ रामकुमार वर्मा ने आदिकाल का समय आठवीं शती से 14वीं शती स्वीकार किया है।

राजनीतिक परिस्थिति

  • राजनीतिक दृष्टि से यह युद्ध और अशांति का काल था। सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु (संवत् 704 वि०) के उपरांत उत्तर भारत खंड-खंड राज्यों में विभक्त हो गया। गहरवार, परमार, चौहान और चंदेल वंश के राजपूत राजाओं ने अपने-अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिये।
  • राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आठवीं शती से 14वीं सदी तक का यह कालखंड युद्ध, संघर्ष तथा अशांति से ग्रस्त रहा। इस वातावरण में कवियों ने एक ओर तो तलवार के गीत गाए तो दूसरी ओर आध्यात्मिकता की प्रवृत्ति के कारण हठयोग, उपदेशवृत्ति एवं आध्यात्मिकता की बात कही गई।

धार्मिक परिस्थिति

  • भारतीय धर्म साधना में उथल-पुथल मची हुई थी। वैदिक एवं पौराणिक धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म भी इस काल में अपना प्रभाव जमाने के लिए प्रयासरत थे। आदिकाल में धार्मिक दृष्टि से तीन संप्रदायों का विशेष प्रभाव परिलक्षित होता है- सिद्ध संप्रदाय, नाथ संप्रदाय एवं जैन संप्रदाय।
  • बौद्ध धर्म कालांतर में वज्रयान बन गया। इन वज्रयानियों को ही सिद्ध कहते थे। धर्म की यह विकृत अवस्था थी। धर्म के वास्तविक आदर्शों के स्थान पर आचारविहीनता, चमत्कार प्रदर्शन, एवं भोग विलास को प्रमुखता मिल गई थी। सिद्धों का प्रभाव निम्न वर्ग की अशिक्षित जनता पर अधिक था। विक्रम की 12 वीं शताब्दी में सिद्धों की प्रतिक्रियास्वरूप नाथ संप्रदाय का उदय हुआ, इसके प्रवर्तक गोरखनाथ थे। नाथ पंथ में योग पर विशेष बल दिया गया साथ ही वर्ण व्यवस्था, बाह्य आडंबर का विरोध किया गया। जैन मुनि धार्मिक तत्वों का निरूपण अपभ्रंश भाषा में कर रहे थे।
  • धार्मिक दृष्टि से आदिकाल का वातावरण अत्यंत दूषित था। जनता असंतोष एवं भ्रम से ग्रस्त थी। आदिकालीन साहित्य में इसी मानसिकता के अनुरूप खंडन-मंडन, हठयोग, वीरता एवं श्रृंगारपरक रचनाओं को देखा जा सकता है।

सामाजिक परिस्थिति

  • राजनीतिक एवं धार्मिक परिस्थितियों के कारण समाज में विश्रृंखलता आ गई थी।
  • जनता शासन तथा धर्म दोनों ओर से निराश्रित होती जा रही थी। पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र, जप-तप करके लोग दुर्भिक्ष, महामारी एवं युद्धों के संकटों को टालना चाहते थे। ब्राह्मणों के प्रति पूज्य भाव में कमी आ गई थी तथा वर्ण-व्यवस्था के प्रति लोगों का सम्मान नहीं रह गया था। निम्न समझी जाने वाली जातियों में से अनेक सिद्ध हो जाते थे, जो वेद विरोधी थे। समाज में स्त्रियों के प्रति पूज्य भाव नहीं था, वह मात्र भोग्या बनकर रह गई थी। सती प्रथा इस काल का एक भयंकर कोढ था।
  • जीवन-यापन के साधन दुर्लभ थे तथा निर्धनता, युद्ध, अशांति के कारण जनता सदैव आतंकित रहती थी। तत्कालीन रासो काव्य में समाज की ह्रासोन्मुख स्थिति का पूरा-पूरा चित्र उपलब्ध होता है।

साहित्यिक परिस्थिति

  • आदिकाल में साहित्य रचना के तीन धाराएं बह रही थी। एक ओर तो परंपरागत संस्कृत साहित्य की रचना हो रही थी तो दूसरी ओर प्राकृत अपभ्रंश भाषा में और प्रभूत साहित्य का सृजन जैन कवियों के द्वारा किया जा रहा था। तीसरी धारा हिंदी में लिखे जाने वाले साहित्य की थी।
  • इस काल में संस्कृत साहित्य के अंतर्गत पुराणों एवं स्मृतियों पर टीकाएं लिखी गई तथा ज्योतिष एवं काव्य शास्त्र पर अनेक मौलिक ग्रंथों की रचना की गई। 9 वी से 11वीं शती तक कन्नौज एवं कश्मीर संस्कृत साहित्य के केंद्र रहे। आनंदवर्धन, मम्मट, भोज, क्षेमेंद्र, कुंतक, राजशेखर, विश्वनाथ, भवभूति एवं श्रीहर्ष जैसी प्रतिमाएं इसी युग की देन है।
  • इस काल में अपभ्रंश प्रमुखतः धर्म की भाषा बन गई थी। देश भाषा हिंदी में भी जनता की मानसिक एवं भावनात्मक दशाओं की अभिव्यक्ति एक वर्ग कर रहा था जिसे भाट या चारण कवि कहा गया। चारण कवियों की सामाजिक आवश्यकता पर बल देते हुए आचार्य शुक्ल ने लिखा है “उस समय तो जो भाट या चारण किसी राजा के पराक्रम, विजय, शत्रु कन्या हरण का अतियुक्ति पूर्ण आलाप करता या रण क्षेत्रों में जाकर वीरों के हृदय में उत्साह की उमंग भरा करता था, वही सम्मान पाता था “

सांस्कृतिक परिस्थिति

  • इस काल में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने अपने संकीर्ण दृष्टिकोण एवं धर्मांधता की भावना से प्रेरित होकर भारतीय संस्कृति के मूल केंद्रों मंदिरों, मठों एवं विद्यालयों को नष्ट करने का पूरा पूरा प्रयास किया। हिंदुओं की स्थापत्य कला धार्मिक भावना से ओतप्रोत थी तथा अत्यंत उच्च कोटि की थी। प्रसिद्ध इतिहासकार अलबरूनी के अनुसार “हिंदू कला के अत्यंत ऊंचे सोपान पर पहुंच चुके हैं। मुसलमान जब उनके मंदिर आदि को देखते हैं तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं। वे ना तो उनका वर्णन कर सकते हैं और ना वैसा निर्माण”
  • मुस्लिम संस्कृति का प्रभाव आदिकालीन हिंदू संस्कृति पर अनेक क्षेत्रों में पड़ने लगा था। दूसरी ओर हिंदू संगीत कला, वास्तुकला, आयुर्वेद एवं गणित का प्रभाव मुस्लिम संस्कृति पर पड़ने लगा।
  • संगीत के क्षेत्र में दोनों संस्कृतियों ने परस्पर आदान-प्रदान पर्याप्त मात्रा में किया है। गायन-वादन और नृत्य पर मुस्लिम प्रभाव पड़ रहा था तथा अनेक वाद्य यंत्र सारंगी, तबला, अलगोजा से हिंदू प्रभावित हो रहे थे। आदिकालीन भारतीय संस्कृति निश्चित रूप से ह्रासोन्मुख थी।

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