Reading Comprehension [IAS (Admin.) Mains Hindi]: Questions 23 - 33 of 40

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Passage

पाठकों की बहुसंख्या या तो क्षणिक मनोरंजन के लिए पढ़ती है या फिर उस विधान्ति के लिए जो पुस्तक उन्हें प्रदान करती है। दूसरे शब्दों में वे सामान्यत: वक्तकटी के लिए पुस्तक पढ़ते है। समय, जैसा कि अक्सर आंका जाता है, एक विरल बेशकीमती खजाना है। इस केशकीमती खजाने को पाठकगण व्यर्थ ही गंवा देते हैं। अविश्वनीय-सा लगता है कि समय या वक्त पाठकों के ऊपर बहुत भारीपन से लदा होता है और फिर वे खोज पाते हैं कि समय के उस अतिरिक्त बोझ से छुटकारा, जिसकी उन्हें जरूरत है, किताबें ही दिला सकती है। इतना तो पर्याप्त स्पष्ट है कि वे किसी दूसरे प्रयोजन के लिए नहीं पढ़ सकते। अगर वे ऐसा करें तब उसे पढ़ने से उन्हें कुछ अपने लिए हासिल हो सकता है, किन्तु ऐसे कोई संकेत नहीं है कि पढ़ने का कोई अन्य प्रयोजन हो। पढ़ने से उन पर कुछ प्रभाव जरूर पड़ते होंगे, परन्तु उन प्रभावों के बारे में वे अनजान हैं। प्रभाव लाभप्रद हो सकते हैं, निर्णायक हो सकते हैं - यह निष्कर्ष हम नहीं निकाल सकते। इसका प्रमाण यही है कि पढ़ने के कारण वे अपने साथ कोई ऐसी चीज नहीं ले जाते कि बाद में कह सकें कि उन्होंने अमुक चीज पढ़ी है।

Question 23 (2 of 6 Based on Passage)

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लेखक ऐसा क्यों महसूस करता है कि पाठक अपने समय की कीमत नहीं आँकते?

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Question 24 (3 of 6 Based on Passage)

Appeared in Year: 2012

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इस तथ्य को संकेतक क्या है कि पाठकों के समय का सही इस्तेमाल नहीं हुआ?

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Question 25 (4 of 6 Based on Passage)

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पढ़ना समाप्त करने के उपरान्त लेखक की क्या अपेक्षा है कि पाठकगण क्या करे?

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Question 26 (5 of 6 Based on Passage)

Appeared in Year: 2012

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असजग पढ़ने के प्रति लेखक का प्रतिकूल दृष्टिकोण क्यों है?

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Question 27 (6 of 6 Based on Passage)

Appeared in Year: 2012

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लेखक किस किस्म के पाठ चाहता है?

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Passage

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उसके आधार पर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट, सही और संक्षिप्त भाषा में दीजिएः

जीवन और पर्यावरण एक-दूसरे से संबद्व हैं। समस्त जीवधारियों का जीवन उनके पर्यावरण की ही उपज होता है। अतः हमारे तन-मन की रचना, शक्ति, सामर्थ्य और विशेषताएँ उस संपूर्ण पर्यावरण से ही नियंत्रित होती हैं, उसी में वे पनपती हैं और विकास पाती हैं। वस्तुतः जीवन और पर्यावरण एक-दूसरे से इतने जुड़े हुए हैं कि दोनों का सह-अस्तित्व बहुत आवश्यक है।

पर्यावरण हमारा रक्षा कवच है जो प्रकृति से हमें विरासत में मिला है। यह हम सब का पालनहार और जीवनाधार है। पर्यावरण मूलतः प्रकृति की देन है। यह भूमि, वन-पर्वतों, नद-निर्झरों, मरुस्थलों, मैदानो, घास के जंगलों, रंग-बिरंगे पशु-पक्षियों, स्वच्छ जल से भरी लहलहाती झीलों और सरोवरों से भरा है। इस पर बहती शीतल, मंद सुगंध वायु तथा उमड़ते और अमृतधार बरसाते बादल-ये सभी धरती पर बसने वाले मनुश्यों के विकास और सुख - समृद्धि के लिए एक संतुलित पर्यावरण का निर्माण करते हैं। किन्तु पर्यावरण का यह प्राकृतिक संतुलन बड़ी तेज़ी से बिगड़ता जा रहा है। आश्चर्य होता है कि मनुष्य धरती के इन स्रोतों का कितना अंधाधुंध दोहन करता जा रहा है, वह इसके वरदानों का इस प्रकार अविवेकपूर्ण दुरुप्रयोग कर रहा है कि सारा प्रकृति -तंत्र गड़बड़ा गया है। अब वह दिन दूर नहीं लगता जब धरती पर हज़ारों शताब्दियों पुराना हिम-युग लौट आए अथवा धु्रवों पर जमी बर्फ़ की मोटी परत पिघल जाने से समुद्र की प्रलयंकारी लहरें नगरों, वन-पर्वतों और जीवन-जंतुओं को निगल जाएँ।

निश्चय ही पर्यावरण को विकृत और दूषित करने वाली समस्त विपदाएँ हमारी अपनी ही लाई हुई हैं। हम स्वयं प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे हैं। इसी असंतुलन से भूमि, वायु, जल और ध्वनि और ध्वनि के प्रदूषण उत्पन्न होते हैं। पर्यावरण -प्रदूषण से फेफड़ों के रोग, हृदय और पेट की बीमारियाँ, दृष्टि और श्रवण क्षतियाँ, मानसिक तनाव और अन्य तनाव संबंधित रोग पैदा हो रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि धरती पर जीवन प्रकृति संतुलन से ही संभव हो सका है। धरती वनस्पतियों से ढक न जाए, इसलिए घास खाने वले जानवर पर्याप्त संख्या में थे। इन घास खाने वाले जानवरों की संख्या को संतुलित-सीमित रखने के लिए हिंसक जंतु भी थे। इन घास तीनों का अनुपात संतुलित और नियंत्रित था। आधुनिक युग में वैज्ञानिक आविश्कारों और उद्योग-धंधों के विकास-फैलाव के साथ-साथ जनसंख्या का भी भयावह विस्फोट हुआ है।

Question 28 (1 of 3 Based on Passage)

Appeared in Year: 2020

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इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए कि ‘जीवन और पर्यावरण एक-दूसरे से संबद्ध हैं।’

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Question 29 (2 of 3 Based on Passage)

Appeared in Year: 2020

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पर्यावरण और प्रकृति का क्या संबंध माना गया हैं?

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Question 30 (3 of 3 Based on Passage)

Appeared in Year: 2020

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पर्यावरण-प्रदूषण से कौन-कौन सी बीमारियाँ पैदा हो रही हैं?

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Passage

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उसके आधार पर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट, सही और संक्षिप्त भाषा में दीजिएः

प्राचीन भारत में राजतंत्र का इतना प्रभाव था कि राज को राज्य की आत्मा कहा गया। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार राजा प्रजा के लिए ईश्वर का प्रतिनिधि है, ताकि प्रजा उसकी सहायता से अपने दुखी जीवन से छुटकारा पा सके। राजविहीन समाज का जीवन कष्टपूर्ण होता है। प्राचीन भारतीय विद्वानों ने राजा या राज्य की उत्पत्ति के संबंध में समय-समय पर अनेक विचार प्रस्तुत किए हैं। उनको विभिन्न सिद्वांतों के रूप में निर्धारित किया गया है, जैसे-दैवीय सिद्वांत, सुरक्षा का सिद्वांत, सामाजिक समझौते का सिद्वांत आदि।

कौटिल्य ने राज्य को मानव जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण, आवश्यक और कल्याणकारी संस्था माना है। उन्होंने राजा की उत्पत्ति की क्रमबद्व विवेचना नहीं की, लेकिन उनके ‘अर्थशास्त्र’ में स्पष्ट उल्लेख है कि जैसे छोटी मछली को बड़ी मछली खा जाती है, उसी तरह प्राचीन काल में बलवान लोग निर्बल लोगों को सताते थे। इस अन्याय (मत्स्य न्याय) यानी जंगल राज से प्रजा पीड़ित थी। पीड़ित प्रजा ने मिलकर एक समर्थ व्यक्ति को अपना राजा नियुक्त किया। उन्होंने राजा को कृशि उपज का छठाँ भाग और व्यापार की आय का दसवाँ भाग देने का निश्चय किया। इसके बदले राजा ने प्रजा के कल्याण का दायित्व अपने ऊपर लिया। जो लोग राजा द्वारा की गई व्यवस्था को नही मानते थे, उन्हें वह दंड देता था। राजा को इन्द्र और यम के समान प्रजा का रक्षक और कृपा करने वाला माना गया है। कौटिल्य के अनुसार राजा की आज्ञा का पालन न करना अथवा उसका अपमान करना निषिद्व है।

जिस समाज में राजा द्वारा प्रजा को रक्षण प्रदान किया जाता है, वहाँ लोग निर्भय होकर घर के दरवाज़े खोलकर विचरण करते हैं। जब राजा रक्षा करता है तो स्त्रियाँ अकेली ही आभूषण पहन कर मार्ग में विचरण कर सकती है। राजा द्वारा रक्षित समाज में मानवता का साम्राज्य होता है। ऐसे राज्य में सब प्रकार की उन्नति होती है। अन्य प्राचीन ग्रंथों के साथ कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में भी इस सत्य को प्रतिपादित किया गया है। पहले राजा का पद अस्थिर और शक्तियाँ नियंत्रित थीं। मगर उत्तर वैदिक काल में राज्यों को आकार ज्यों-ज्यों बढ़ता गया, त्यों, त्यों राजा के अधिकार एवं ऐश्वर्य में वृद्वि होती गई। प्रजा की रक्षा की अपेक्षा राजा की रक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। राज-पद की प्रतिष्ठा के अनुरूप राजा का वैभव, शान-शौकत और दिखावा बढ़ गया। शुक्र नीमि में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है।

Question 31 (1 of 5 Based on Passage)

Appeared in Year: 2021

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राजा और राज्य की प्राचीन अवधारणा क्या है?

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Question 32 (2 of 5 Based on Passage)

Appeared in Year: 2021

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‘मत्स्य न्याय’ को अन्याय कहने का क्या अभिप्राय है?

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Question 33 (3 of 5 Based on Passage)

Appeared in Year: 2021

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राजा और प्रजा के आपसी संबंधों का आधार क्या है?

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