Reading Comprehension-Prose or Drama [CTET (Central Teacher Eligibility Test) Paper-II Hindi]: Questions 243 - 247 of 723
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Passage
संस्कृति के निर्माण में एक सीमा तक देश और जाति का योगदान रहता है। संस्कृति के मूल उपादान तो प्राय: सभी सुसंस्कृत और सभ्य देशों में एक सीमा एक समान रहते हैं किन्तु बाह्य उपादानों में अन्तर अवश्य आता है। राष्ट्रीय या जातीय संस्कृति का सबसे बड़ा योगदान यही है कि वह हमें अपने राष्ट्र की परम्परा से संयुक्त बनाती है, अपनी रीति-नीति की सम्पदा से विच्छिन्न नहीं होने देती। आज के युग में राष्ट्रीय एवं जातीय संस्कृतियों के मिलने के अवसर अति सुलभ हो गए हैं। संस्कृतियों का पारस्परिक संघर्ष भी शुरू हो गया है। कुछ ऐसे विदेशी प्रभाव हमारे देश पर पड़ रहे हैं, जिनके आन्तक ने हमें स्वयं अपनी संस्कृति के प्रति शंकालु बना दिया है। हमारी आस्था डिगने लगी है। यह हमारी वैचारिक दुर्बलता का फल है। अपनी संस्कृति को छोड़ विदेशी संस्कृति के विवेकहीन अनुकरण से हमारे राष्ट्रीय गौरव को जो ठेस पहुँच रही है, वह किसी राष्ट्रप्रेमी जागरूक व्यक्ति से छिपी नहीं है। भारतीय संस्कृति में त्याग और ग्रहण की अद्भुत क्षमता रही है। अत: आज के वैज्ञानिक युग में हम किसी भी विदेशी संस्कृति के जीवन्त तत्वों को ग्रहण करने में पीछे नहीं रहना चाहेंगे, किन्तु अपनी सांस्कृतिक निधि की उपेक्षा करके नहीं। यह परावलम्बन राष्ट्र की गरिमा के अनुरूप नहीं है। यह स्मरण रखना चाहिए कि सूर्य की आलोक प्रदायिनी किरणों से पौधे को चाहे जितनी जीवनी शक्ति मिले, किन्तु अपनी जमीन और अपनी जड़ों के बिना कोई पौधा जीवित नहीं रह सकता। अविवेकी अनुकरण अज्ञान का ही पर्याय है।
Question 243 (3 of 6 Based on Passage)
Question MCQ▾
राष्ट्रीय अथवा जातीय संस्कृति की हमारे प्रति सबसे बड़ी देन यह है कि वह हमें
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | अपने अतीत से जोड़े रखती है | |
b. | अपने राष्ट्र की परम्परा और रीति-नीति का बोध कराती है | |
c. | अपने राष्ट्र की परम्परा और रीति-नीति की याद दिलाती है | |
d. | अपने राष्ट्र की परम्परा और रीति-नीति से जोड़े रखती है |
Question 244 (4 of 6 Based on Passage)
Question MCQ▾
हम अपनी सांस्कृतिक परम्परा की उपेक्षा इसलिए नहीं कर सकते क्योंकि
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | अपने राष्ट्र को अपमानित करने के समान है | |
b. | अविवेकी अनुकरण अज्ञान का ही दूसरा नाम है और हम अज्ञानी नहीं है | |
c. | ऐसा करने से हम जड़-विहीन पौधे के सदृश हो जायेंगे | |
d. | ऐसा करना हमारे राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नहीं है |
Question 245 (5 of 6 Based on Passage)
Question MCQ▾
हम विदेशी संस्कृति के महत्वपूर्ण तत्वों को ग्रहण कर सकते है, क्योंकि
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | भारतीय संस्कृति जड़ न होकर लेनदेन में विश्वास रखती है | |
b. | विदेशी संस्कृति के जीवन्त तत्व हमारी संस्कृति को समृद्ध ही करेंगे | |
c. | आज के वैज्ञानिक युग में ऐसा करना परमावश्यक है | |
d. | भारतीय संस्कृति में त्याग के साथ ग्रहण की अद्भुत क्षमता है |
Question 246 (6 of 6 Based on Passage)
Question MCQ▾
‘अविवेकीकरण’ अनुकरण का पर्याय है
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | संस्कृति | |
b. | अज्ञान | |
c. | विवेक | |
d. | ज्ञान |
Passage
मानव जीवन के आदिकाल में अनुशासन की कोई संकल्पना नहीं थी और न ही आज की भाँति बड़े-बड़े नगर या राज्य ही थे। मानव जंगल में रहता था। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत उसके जीवन पर पूर्णत: चरितार्थ होती थी। व्यक्ति पर किसी भी नियम का बन्धन या किसी प्रकार के कर्तव्यों का दायित्व नहीं था, किन्तु इतना स्वतंत्र और निरंकुश होते हुए भी मानव प्रसन्न नहीं था। आपसी टकराव होते थे, अधिकारों-कर्तव्यों में संघर्ष होता था और नियमों की कमी उसे खलती थी। धीरे-धीरे उसकी अपनी ही आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज और राज्य का उद्भव और विकास हुआ। अपने उद्देश्य की सिद्धि एवं आवश्यकताओं के लिए मानव में अन्तत: कुछ नियमों का निर्माण किया, उनमें से कुछ नियमों के पालन करवाने का अधिकार राज्य को और कुछ का अधिकार समाज को दे दिया गया। व्यक्ति के बहुमुखी विकास में सहायत होने वाले इन नियमों का पालन ही अनुशासन कहलाता है। अनुभव सबसे बड़ा शिक्षक होता है। समाज ने प्रारम्भ में अपने अनुभवों से ही अनुशासन के इन नियमों को सीखा, विकसित किया और सुव्यवस्थित किया होगा।
Question 247 (1 of 9 Based on Passage)
Question MCQ▾
1. इस गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक हो सकता है
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | आवश्यकता आविष्कार की जननी है | |
b. | जीवन का उद्देश्य | |
c. | अनुशासन की संकल्पना | |
d. | जिसकी लाठी उसकी भैंस |