Reading Comprehension [CTET (Central Teacher Eligibility Test) Paper-II Hindi]: Questions 46 - 51 of 1026
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Passage
पूछा किसी भाग्यवादी से,
यदि विधि अंक प्रबल है
पद पर क्यों देती न स्वयं
वसुधा निज रतन उगल है।
Question 46 (5 of 6 Based on Passage)
Question MCQ▾
तुकबन्दी के कारण कौनसा शब्द बदले हुए रूप में प्रयुक्त हुआ है?
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | उगल | |
b. | प्रबल | |
c. | रतन | |
d. | स्वयं |
Question 47 (6 of 6 Based on Passage)
Question MCQ▾
इनमें से कौनसा ‘वसुधा’ का समानार्थी है?
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | वारिधि | |
b. | जलधि | |
c. | महीप | |
d. | वसुन्धरा |
Passage
प्राचीन भारत में शिक्षा ज्ञान प्राप्ति का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता था। व्यक्ति के जीवन को संतुलित और श्रेष्ठ बनाने तथा एक नई दिशा प्रदान करने में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान था। सामाजिक बुराइयों को उसकी जड़ों से निर्मूल करने और त्रुटिपूर्ण जीवन में सुधार करने के लिए शिक्षा की नितान्त आवश्यकता थी। यह एक ऐसी व्यवस्था थी, जिसके दव्ारा सम्पूर्ण जीवन ही परिवर्तित किया जा सकता था। व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का विकास करने, वास्तविक ज्ञान को प्राप्त करने और समस्याओं को दूर करने के लिए शिक्षा पर निर्भर होना पड़ता था। आधुनिक युग की भाँति प्राचीन भारत में भी मनुष्य के चरित्र का उत्थान शिक्षा से ही सम्भव था। सामाजिक उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक वहन करना प्रत्येक मानव का उल्लेखनीय योगदान रहता है। भारतीय मनीषियों ने इस ओर अपना ध्यान केन्द्रित करके शिक्षा को समाज की आधारशिला के रूप में स्वीकार किया। विद्या का स्थान किसी भी वस्तु से बहुत ऊँचा बताया गया। प्रखर बुद्धि एवं सही विवेक के लिए शिक्षा की उपयोगिता को स्वीकार किया गया। यह माना गया कि शिक्षा ही मनुष्य को व्यावहारिक कर्तव्यों का पाठ पढ़ाने और सफल नागरिक बनाने में सक्षम है। इसके माध्यम से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक अर्थात् सर्वांगीण विकास सम्भव है। शिक्षा ने ही प्राचीन संस्कृति को संरक्षण दिया और इसके प्रसार में मदद की।
विद्याल का आरम्भ उपनयन संस्कार दव्ारा होता था। उपनयन संस्कार के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मनुस्मृति में उल्लेख मिलता है कि गर्भाधान संस्कार दव्ारा तो व्यक्ति का शरीर उत्पन्न होता है पर उपनयन संस्कार दव्ारा उसका आध्यात्मिक जन्म होता है। प्राचीन काल में बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए आचार्य के पास भेजा जाताथा। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, जो ब्रह्मचर्य ग्रहण करता है। वह लम्बी अवधि की यज्ञावधि ग्रहण करता है। छान्दोग्योपनिषद् में उल्लेख मिलता है कि आरूणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को ब्रह्मचारी रूप में वेदाध्ययन के लिए गुरू के पास जाने को प्रेरित किया था। आचार्य के पास रहते हुए ब्रह्मचारी को तप और साधना का जीवन बिताते हुए विद्याध्ययन में तल्लीन रहना पड़ता था। इस अवस्था में बालक जो ज्ञानार्जन करता था उसका लाभ उसको जीवन भर मिलता था। गुरू गृह में निवास करते हुए विद्यार्थी समाज के निकट सम्पर्क में आता था। गुरू के लिए समिधा, जल का ालना तथा गृह कार्य करना उसका कर्तव्य माना जाता था। गृहस्थ धर्म की शिक्षा केसाथ-साथ वह श्रम और सेवा का पाठ पढ़ता था। शिक्षा केवल सैद्धान्तिक और पुस्तकीय न होकर जीवन की वास्तविकताओं के निकट होती थी।
Question 48 (1 of 9 Based on Passage)
Question MCQ▾
प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से कौनसा हो सकता है?
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | भारतीय शिक्षा प्रणाली | |
b. | प्राचीन भारत में शिक्षा का विकास | |
c. | शिक्षा के लाभ | |
d. | प्राचीन भारत में शिक्षा |
Question 49 (2 of 9 Based on Passage)
Question MCQ▾
प्राचीन काल में विद्यार्थियों के कर्तव्य निम्नलिखित में से कौनसे थे?
A. ब्रह्मचर्य
B. गुरू के साथ रहना
C. गुरू की सेवा करना
D. गृहस्थ जीवन व्यतीत करना
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | A, B एवं C | |
b. | A एवं B | |
c. | C एवं D | |
d. | B, C एवं D |
Question 50 (3 of 9 Based on Passage)
Question MCQ▾
प्राचीन काल में विद्या का आरम्भ जिस संस्कार से होता था, उसके बारे में वर्णन किस ग्रन्थ में मिलता है?
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | मनुस्मृति | |
b. | छान्दोग्योपनिषद् | |
c. | महाभारत | |
d. | कठोपनिषद् |
Question 51 (4 of 9 Based on Passage)
Question MCQ▾
निम्नलिखित में से कौनसा कथन असत्य है?
Choices
Choice (4) | Response | |
---|---|---|
a. | भारतीय मनीषियों ने शिक्षा को समाज की आधारशिला के रूप में स्वीकार किया | |
b. | ब्रह्मचर्य के लाभ का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में है | |
c. | छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार आरूणि का पुत्र श्वेतकेतु था | |
d. | प्राचीन भारत में मनुष्य का उत्थान धर्म-कर्म में लीन रहकर ही सम्भाव था |