कृतिका (Kritika-Textbook)-Prose [CBSE (Central Board of Secondary Education) Class-10 (Term 1 & 2 MCQ) Hindi]: Questions 233 - 248 of 461
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Passage
शहनाई वालों ने टुन्नू के गीत को बंद बाजे में दोहराया। लोग यह देखकर चकित थे कि बात-बात में तीरकमान हो जाने (हमले की लिए या लड़ने के लिए तैयार रहना) वाली दुलारी आज अपने स्वभाव के प्रतिकूल खड़ी-खड़ी मुसकरा रही थी। कंठ-स्वर की मधुरता में टुन्नू दुलारी से होड़ कर रहा था और दुलारी मुग्ध खड़ी सुन रही थी।
टुन्नू के इस सार्वजनिक आविर्भाव का यह तीसरा या चौथा अवसर था। उसके पिता जी घाट पर बैठकर और कच्चे महाल के दस-पाँच घर यजमानी में सत्यनारायण की कथा से लेकर श्राद्ध और विवाह तक कराकर कठिनाई से गृहस्थी की नौका खे रहे थे। परंतु पुत्र को आवारों की संगति में शायरी का चस्का लगा। उसने भैरोहेला को अपना उस्ताद बनाया और शीघ्र ही सुंदर कजली-रचना करने लगा। वह पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी में कुशल था और अपनी इसी विशेषता के बल पर वह बजरडीहा वालों की ओर से बलाया गया था। उसकी ‘शायरी’ पर बजरहीडा वालों ने ‘वाह-वाह’ का शोर मचाकर सिर पर आकाश उठा लिया। खोजवाँ वालों का रंग उतर (शोभा या रौनक घटना) गया। टुन्नू का गीत भी समाप्त हो गया।
Question 233 (5 of 10 Based on Passage)
Question 234 (6 of 10 Based on Passage)
Question 235 (7 of 10 Based on Passage)
Question 236 (8 of 10 Based on Passage)
Question 237 (9 of 10 Based on Passage)
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किसकी ‘शायरी’ पर बजरहीडा वालों ने ‘वाह-वाह’ का शोर मचाकर सिर पर आकाश उठा लिया था?
EditQuestion 238 (10 of 10 Based on Passage)
Passage
इतने स्वर्गीय सौंदर्य, नदी, फूलों, वादियों और झरनों के बीच भूख, मौत, दैन्य और ज़िंदा रहने की यह जंग! मातृत्व व श्रम साधना साथ-साथ। वहीं पर खड़े बी. आर. ओ. (बोर्ड रोड आर्गेनाइजेशन) के एक कर्मचारी से पूछा मैने, “यह क्या हो रहा है? उसने चुहलबाजी के अंदाज में बताया कि जिन रास्तों से गुजरते हुए आप हिम-शिखरों से टक्कर लेने जा रही हैं उन्हीं रास्तों को ये पहाड़िने चौड़ा बना रही है।”
Question 239 (1 of 2 Based on Passage)
Question 240 (2 of 2 Based on Passage)
Passage
वहीं पर घूमते हुए एक सिक्किमी नवयुवक ने मुझे बताया कि प्रदूषण के चलते स्नो-फॉल लगातार कम होती जा रही है पर यदि मैं ‘कटाओ’ चली जाऊँ तो मुझे वहाँ शर्तिया बर्फ़ मिल जाएगी … . कटाओ यानी भारत का स्विट्जरलैंड! कटाओ जो कि अभी तक टूरिस्ट स्पॉट नहीं बनने के कारण सुर्खियों (चर्चा में आना) में नहीं आया था, और अपने प्राकृतिक स्वरूप में था। कटाओ जो लायुंग से 500 फीट ऊँचाई पर था और करीब दो घंटे का सफ़र था। वह नवयुवक मुझसे बतिया रहा था और उसकी घरवाली अपने छोटे से लकड़ी के घर के बाहर हमें उत्सुकमापूर्वक देख रही थी कि तभी गाय ने आकर थैले में रखा उसका महुआ गुडुप (निगल लिया) कर लिया था। मीठी झिड़कियाँ देकर उसने गाय को भगा दिया था।
Question 241 (1 of 2 Based on Passage)
Question 242 (2 of 2 Based on Passage)
Passage
यूमथांग की घाटियों में एक नया आकर्षण और जुड़ गया था … ढेरों-ढेर प्रियुता और रूडोडेंड्रों के फूल। जितेन बताने लगा, “बस प्रदंह दिनों में ही देखिएगा पूरी घाटी फूलों से इस कदर भर जाएगी कि लगेगा फूलों की सेज रखी हो”
यहाँ रास्ते अपेक्षाकृत चौड़े थे, इस कारण खतरो का अहसास कम था। इन घाटियों में कई बंदर भी दिखें। कुछ अकेले कुछ अपने बाल-बच्चों के साथ।
बहराहाल … . घाटियों, वादियों, पहाड़ों और बादलों की आँख-मिचौली दिखाती, पहाड़ी कबूतरों को उड़ाती हमारी जीप जब यूमथांग पहुँची तो हम थोड़े निराश हुए। बर्फ़ से ढके कटाओ के हिमशिखरों को देखने के बाद यूमथांग थोड़ा फीका लगा और यह भी अहसास हुआ कि मंजिल से कहीं ज्य़ादा रोमाचंक होता है मंजिल तक का सफ़र।
Question 243 (1 of 4 Based on Passage)
Question 244 (2 of 4 Based on Passage)
Question 245 (3 of 4 Based on Passage)
Question 246 (4 of 4 Based on Passage)
Passage
उसी लायुंग में हम ठहरे थे। तिस्ता नदी के तीर पर बसे लकड़ी के एक छोटे-से घर में। मुँह हाथ धोकर मैं तुरंत ही तिस्ता नदी के किनारे बिखरे पत्थरों पर बैठ गई थी। सामने बहुत ऊपर से बहता झरना नीचे कल-कल बहती तिस्ता में मिल रहा था। मदव्म-मदव्म (धीमी, हलकी) हवा बह रही थी। पेड़-पौधे झूम रहे थे। गहरे बालों की परत ने चाँद को ढक रखा था … . बाहर परिंदे और लोग अपने घरों को लौट रहे थे। वातावरण में अद्भुत शांति थी। मंदिर की घंटियों-सी … घुँघरुओं की रुनझुनाहट-सी। आँखे अनायास भर आई। ज्ञान का नन्हा-सा बोधिसत्व जैसे भीतर उगने लगा … . वहीं सुख शांति और सुकून है जहाँ अखंडित संपूर्णता है-पेड़, पौधे, पशु और आदमी-सब अपनी-अपनी लय, ताल और गति में हैं। हमारी पीढ़ी ने प्रकृति की इस लय, ताल और गति से खिलवाड़ कर अक्षम्य अपराध किया है। हिमालय अब मेरे लिए कविता ही नहीं, दर्शन बन गया था।