कृतिका (Kritika-Textbook) [CBSE (Central Board of Secondary Education) Class-10 (Term 1 & 2 MCQ) Hindi]: Questions 50 - 66 of 461

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Passage

मइयाँ चावल अमनिया (साफ, शुद्ध) कर रही थी। हम किसी के आँचल में छिप गए। हमें डर से काँपते देखकर वह ज़ोर से रो पड़ी और सब काम छोड़ बैठी। अधीर होकर हमारे भय का कारण पूछने लगी। कभी हमें अंग भरकर दबाती और कभी हमारे अंगों को अपने आँचल से पोंछकर हमें चूम लेती। बड़े संकट में पड़ गई।

Question 50 (1 of 5 Based on Passage)

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मइयाँ आँगन में क्या रही थी?

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Question 51 (2 of 5 Based on Passage)

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बच्चा कहाँं जाकर छिप गया था?

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Question 52 (3 of 5 Based on Passage)

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मइयाँ अधीर होकर क्या करने लगी?

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Question 53 (4 of 5 Based on Passage)

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भय के कारण सुनने के बाद मइयाँ ने क्या किया?

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Question 54 (5 of 5 Based on Passage)

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चावल अमनिया क्या होता है?

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Passage

थोड़ी देर में मिठाई की दुकान बढ़कार हम लोग घरौंदा बनाते थे। धूल की मेड़ दीवार बनती और तिनकों का छप्पर। दातून के खंभे, दियासलाई की पेटियों के किवाड़, घड़े के मुँहड़े की चूल्हा-चक्की, दीए की कड़ाही और बाबू जी की पूजा वाली आचमनी कलछी बनती थी। पानी के घी, धूल के पिसान और बालू की चीनी से हम लोग ज्योनार (भोज, दावत) करते थे। हमीं लोग ज्योनार करते और हमीं लोगों की ज्योनार बैठती थी। जब पंगत बैठ जाती थी तब बाबू जी भी धीरे-से आकर, पाँत के अंत में, जीमने (भोजन करना) के लिए बैठ जाते थे। उनको बैठते देखते ही हम लोग हँसकर और घरौंदा बिगाड़कर भाग चलते थे। वह भी हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाते और कहने लगते-फिर कब भोज होगा भोलानाथ?

Question 55 (1 of 8 Based on Passage)

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मिठाई की दुकान बढ़ाकर बच्चें क्या करते थें?

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Question 56 (2 of 8 Based on Passage)

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बच्चें घरौंदा किस प्रकार बनाते थे?

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Question 57 (3 of 8 Based on Passage)

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नाटक में बच्चे खाने के बर्तन व खाना किससे बनाते थे?

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Question 58 (4 of 8 Based on Passage)

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ज्योनार क्या होती है?

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Question 59 (5 of 8 Based on Passage)

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ज्योनार किसकी बैठती है?

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Question 60 (6 of 8 Based on Passage)

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नाटक में पंगत के अंत में कौन बैठते थे?

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Question 61 (7 of 8 Based on Passage)

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बच्चे बाबू जी को पंगत में बैठा देखकर क्या करते थे?

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Question 62 (8 of 8 Based on Passage)

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नाटक में बाबू जी बच्चों के भाग जाने पर क्या कहते थे?

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Passage

तमाशे भी ऐसे-वैसे नहीं, तरह-तरह के नाटक! चबूतरे का एक कोना ही नाटक-घर बनता था। बाबू जी जिस छोटी चौकी पर बैठकर नहाते थे, वही रंगमंच बनती। उसी पर सरकंडे के खंभों पर कागज़ का चँदोआ (छोटा शमियाना) तानकर, मिठाइयों की दुकान लगाई जाती। उसमें चिलम के खोंचे पर कपड़े के थालों में ढेले के लड्डू, पत्तों की पूरी-कचौरियाँ, गीली मिट्टी की जलेबियाँ, फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जातीं। ठीकरों के बटखरे और जस्ते के छोटे-छोट टुकड़ों के पैसे बनते। हमीं लोग खरीदकर और हमीं लोग दुकानदार बाबू जी भी दो-चार गोरखपुरिए पैसे खरीद लेते थे।

Question 63 (1 of 5 Based on Passage)

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नाटक घर कैसा बनता था?

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Question 64 (2 of 5 Based on Passage)

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बच्चें मिठाई की दुकान कहाँ पर लगाते थे?

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Question 65 (3 of 5 Based on Passage)

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बच्चे कौन कौन सी मिठाई तमाशे या नाटक में बनाते थें?

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Question 66 (4 of 5 Based on Passage)

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नाटक में पैसे किसके बनते थें?

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