कृतिका (Kritika-Textbook) [CBSE (Central Board of Secondary Education) Class-10 (Term 1 & 2 MCQ) Hindi]: Questions 392 - 407 of 461
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Passage
मूर्तिकार हिंदुस्तान के पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे पर निकल पड़ा। कुछ दिनों बाद वह हताश लौटा, उसके चेहरे पर लानत बरस रही थी, उसने सिर लटकाकर खबर दी, “हिंदुस्तान का चप्पा-चप्पा खोज डाला पर इस किस्म का पत्थर कहीं नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है।”
सभापति ने तैश में आकर कहा, “लानत है आपकी अक्ल पर! विदेशों की सारी चीज़ेें हम अपना चुके हैं-दिल-दिमाग, तौर तरीके और रहन -सहन, जब हिंदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?”
Question 392 (3 of 3 Based on Passage)
Passage
मूर्तिकार ने सुना और जवाब दिया, “नाक लग जाएगी। पर मुझे यह मालूम होना चाहिए कि यह लाट कब और कहाँ बनी थी। इस लाट के लिए पत्थर कहाँ से लाया गया था?”
सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ़ ताका … . एक की नज़र ने दूसरे से कहा कि यह बताने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। खैर मसला हल हुआ। एक र्क्लक को फोन किया गया और इस बात की पूरी छानबीन करने का काम सौंपा गया। … पुरातत्व विभाग की फाइलों के पेट चीरे गए पर कुछ पता नहीं चला। र्क्लक ने लौटकर कमेटी के सामने काँपते हुए बयान किया, “सर मेरी खता माफ़ हो, फाइलें सब कुछ हज़म कर चुकी हैं।”
Question 393 (1 of 2 Based on Passage)
Question 394 (2 of 2 Based on Passage)
Passage
लेकिन मूर्तिकार पैसे से लाचार था … . यानी हार मानने वाला कलाकार नहीं था। एक हैरतअंगेज खयाल उसके दिमाग में कौंधा और उसने पहली शर्त दोहराई। जिस कमरे में कमेटी बैठी हुई थी उसके दरवाजे फिर बंद हुए और मूर्तिकार ने अपनी नयी योजना पेश की, “चूँकि नाक लगना एकदम ज़रूरी है, इसलिए मेरी राय है कि चालीस करोड़ में से कोई एक जिंदा नाक काटकर लगा दी जाए … .”
बात के साथ ही सन्नाटा छा गया। कुछ मिनटों की खामोशी के बाद सभापति ने सबकी तरफ़ देखा। सबको परेशान देखकर मूर्तिकार कुछ अचकचाया (चौंक उठना, भौंचक्का होना) और धीरे से बोला, “आप लोग क्यों घबराते हैं! यह काम मेरे ऊपर छोड़ दीजिए … नाक चुनना मेरा काम है, आपकी सिर्फ़ इजाज़त चाहिए।”
कानाफूसी हुई और मूर्तिकार को इजाज़त दे दी गई।
Question 395 (1 of 1 Based on Passage)
Passage
मैं कुछ पूछती कि वह फिर चाले हो गया, “मैडम यूमथांग भी पहले टूरिस्ट स्पॉट नहीं था। यह तो सिक्किम जब भारत में मिला उसके भी कई वर्षो बाद भारतीय आर्मी के कप्तान शेखर दत्ता के दिमाग में आया कि यहाँ सिर्फ़ फ़ौजियों को रखकर क्या होगा, घाटियों के बीच रास्ते निकालकर इसे टूरिस्ट स्पॉट बनाया जा सकता है। आप देखिए, अभी भी रास्ते बन रहे हैं।”
‘हाँ, रास्ते अभी भी बन रहे हैं। नए-नए स्थानों की खोज अभी भी जारी है। शायद मनुष्य की इसी असमाप्त खोज का नाम सौंदर्य है’ … . मन-ही-मन मैं कहती हूँ।
जीप आगे बढ़ने लगती है।
Question 396 (1 of 2 Based on Passage)
Question 397 (2 of 2 Based on Passage)
Passage
तो हिरोशिमा में सब देखकर भी तत्काल कुछ लिखा नहीं, क्योंकि इसी प्रत्यक्ष अनुभूति की कसर थी। फिर एक दिन वहीं सड़क पर घूमते हुए देखा कि एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया है-विस्फोट के समय वहाँ कोई खड़ा रहा होगा और विस्फोट से बिखरे हुए रेडियम-धर्मी पदार्थ की किरणें उसमें रुद्ध (बंद हो गई, फँस गई) हो गई होंगी। जो आस-पास से आगे बढ़ गई उन्होंने पत्थर को झुलसा दिया, जो उस व्यक्ति पर अटकीं उन्होंने उसे भाप बनाकर उड़ा दिया होगा। इस प्रकार सूमूची ट्रेजडी जैसे पत्थर पर लिखी गई।
Question 398 (1 of 2 Based on Passage)
Question 399 (2 of 2 Based on Passage)
Passage
दरअसल मंत्रमुग्ध-सी मैं तंद्रिल अवस्था में ही थोड़ी दूर तक निकल आई थी कि अचानक पाँवों पर ब्रेक सी लगी … . जैसे समाधिस्थ भाव में नृत्य करती किसी आत्मलीन नृत्यांगना के नुपूर अचानक टूट गए हों। मैंने देखा इस अदव्तीय सौंदर्य से निरपेक्ष कुछ पहाड़ी औरतें पत्थरों पर बैठीं पत्थर तोड़ रही थीं। गुँथे आटे-सी कोमल काया पर हाथों में कुदाल और हथौड़े! कईयों की पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे हुए थे। कुछ कुदाल को भरपूर ताकत के साथ ज़मीन पर मार रही थीं।
Question 400 (1 of 2 Based on Passage)
Question 401 (2 of 2 Based on Passage)
Passage
फेंकू सरदार की चौड़ी और पुष्ठ पीठ पर शपाशप झाडू झाड़ती तथा उसके पीछे-पीछे धमाधम सीढ़ी उतरती दुलारी चिल्लाई, “निकल-निकल, अब मेरी देहरी डाँका (लाँघना) ं तो तेरी दाँत से नाक काट लूँगी।”
उत्कट क्रोध से दुलारी के नथने फूल गए थे, अधर फड़क रहा था, आँखों से ज्वाला-सी निकल रही थी। फेंकू के गली में निकलते ही दरवाजा बंद कर लिया। उधर पुलिस रिपोर्टर से आँखे चार होते ही झेंपने के बावजूद लाचार-सा होकर फेंकू उसकी ओर बढ़ा और इधर धीरे-धीरे दुलारी आँगन में लौटी। आँगन में खड़ी उसकी संगनियों और पड़ोसिनों ने उसकी ओर कुतूहल-भरी दृष्टि से देखा, परंतु दुलारी ने उनकी ओर आँख तक न उठाई। सीढ़ी चढ़कर उपेक्षा से झाडू अपनी कोठरी के दव्ार पर फेंकती हुई वह अपनी कोठरी जा घुसी। चूल्हे पर बटलोही में दाल चुर रही थी। उसने पैर की एक ठोकर से बटलोही उलट दी। सारी दाल चूल्हे में जा गिरी। आग बुझ गई।
Question 402 (1 of 3 Based on Passage)
Question 403 (2 of 3 Based on Passage)
Question 404 (3 of 3 Based on Passage)
Passage
दुलारी फेंकू को उत्तर देना ही चाहती थी कि जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह करता हुआ देश के दीवानों का दल भैरवनाथ की सँकरी गली में घुसा और ‘भारतजननि तेरी जय, तेरी जय हो’ गीत ध्वनि से उभय पार्श्व (दोनों तरफ) खड़ी इमारतों की प्रत्येक कोठरी में गूँज गई। एक बड़ी सी चादर फेलाकर चार व्यक्तियों ने उसके चारों कोनों को मजबूती से पकड़ रखा था। उसी पर खिड़िकियों से धोती, साड़ी, कमीज, कुरता, टोपी आदि की वर्षा हो रही थी।
Question 405 (1 of 5 Based on Passage)
Question 406 (2 of 5 Based on Passage)
Question 407 (3 of 5 Based on Passage)
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विदेशी वस्त्रों का संग्रह करता हुआ देश के दीवानों का दल कौनसी गली में घुसा?
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