कृतिका (Kritika-Textbook) [CBSE (Central Board of Secondary Education) Class-10 (Term 1 & 2 MCQ) Hindi]: Questions 216 - 232 of 461

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Passage

अखबारों में सिर्फ़ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक लग रही है।

नाक लगने से पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों को तैनाती हुई। मूर्ति के आस-पास का तालाब सुखाकर साफ़ किया गया। उसकी रबाव निकाली गई और ताजा पानी डाला गया ताकि जो ज़िंदा नाक लगाई जाने वाली थी, वह सुख न पाए। इस बात की खबर जनता को पता नहीं थी। यह सब तैयारियाँ भीतर-भीतर चल रही थीं। रानी के आने का दिन नज़दीक आता जा रहा था मूर्तिकार खुद अपने बताए हल से परेशान था। ज़िंदा नाक लाने के लिए उसने कमेटी वालों से कुछ और मदद माँगी। वह उसे दी गई। लेकिन इस हिदायत के साथ कि एक खास दिन हर हालत में नाक लग जानी चाहिए।

और वह दिन आया।

जॉर्ज पंचम की नाक लग गई।

Question 216 (1 of 3 Based on Passage)

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अखबारों में क्या छपा था?

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Question 217 (2 of 3 Based on Passage)

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जिंदा नाक लगाने से पहले क्या किया गया?

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Question 218 (3 of 3 Based on Passage)

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नाक लगाने वाली बात किसको पता नहीं थी?

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Passage

टुन्नू ने जवाब नहीं दिया। उसकी आँखों से कज्जल-मलिन आँसुओं की बूंदे नीचे सामने पड़ी धोती पर टप-टप टपक रही थीं। दुलारी कहती गई … ।

टुन्नू पाषाण-प्रतिमा बना हुआ दलारी का भाषण सुनता जा रहा था। उसने इतना ही कहा, “मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” और कोठरी से बाहर निकल वह धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगा। दुलारी भी खड़ी-खड़ी उसे देखती रही। उसकी भौं अब भी वक्र थी, परंतु नेत्रों ने कौतुक और कठोरता का स्थान करुणा की कोमलता ने ग्रहण कर लिया था। उसने भूमि पर पड़ी धोती उठाई, उस पर काजल से सने आँसुओं के धब्बे पड़ गए थे। उसने एक बार गली में जाते हुए टुन्नू की ओर देखा और फिर स्वच्छ धोती पर पड़े धब्बों को वह बार-बार चूमने लगी।

Question 219 (1 of 2 Based on Passage)

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धोती पर क्या टपक रहा था?

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Question 220 (2 of 2 Based on Passage)

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टुन्नू क्या कर रहा था?

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Passage

दनादन फ़ोटो खिंचलाने की बजाय मैं उस सारे परिदृश्य को अपने भीतर लगातार खींच रही थी जिससे महानगर के डार्क रूम में इसे फिर-फिर देख सकूँ। संपूर्णता के उन क्षणों में यह हिमशिखर मुझे मेरे आध्यात्मिक अतीत से जोड़ रहे थे। शायद ऐसी ही विभोर कर देने वाली दिव्यता के बीच हमारे ऋषि-मुनियों ने वेदों की रचना की होगी। जीवन सत्यों को खोजा होगा। ‘सर्वे भवंतु सुखिन:’ का महामंत्र पाया होगा। अंतिम संपूर्णता का प्रतीक वह सौंदर्य ऐसा कि बड़ा से बड़ा अपराधी भी इसे देख ले तो क्षणों के लिए ही सही ‘करुणा का अवतार’ बुद्ध बन जाए।

Question 221 (1 of 3 Based on Passage)

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फोटा खिंचवाने की बजाय लेखिका क्या रही थी?

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Question 222 (2 of 3 Based on Passage)

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लेखिका को ये हिमशिखर किस अतीत से जोड़ रहे थे?

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Question 223 (3 of 3 Based on Passage)

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हिमशिखरों के बीच ऋषि-मुनियों ने क्या किया था?

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Passage

उच्च स्तर पर मशवरे हुए, दिमाग खरोंचे गए और यह तय किया गया कि हर हालत में इस नाक का होना बहुत ज़रूरी है। यह तय होते ही एक मूर्तिकार को हुक्म दिया गया कि वह फ़ौरन दिल्ली में हाज़िर हो।

मूर्तिकार यों तो कलाकार था पर ज़रा पैसे से लाचार था। आते ही, उसने हुक्कामों के चेहरे देखे, अजीब परेशानी थी उन चेहरों पर, कुछ लटके, कुछ उदास और कुछ बदहवास थे। उनकी हालत देखकर लाचार कलाकार की आँखों में आसूँ आ गए तभी एक आवाज़ सुनाई दी, “मूर्तिकार! जॉर्ज पंचम की नाक लगानी है!”

Question 224 (1 of 5 Based on Passage)

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मीटिंग में तय होते ही किसको हुक्म दिया गया?

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Question 225 (2 of 5 Based on Passage)

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मूर्तिकार किससे लाचार था?

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Question 226 (3 of 5 Based on Passage)

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मूर्तिकार ने आते ही क्या देखा?

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Question 227 (4 of 5 Based on Passage)

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हुक्कामों की हालात देखकर मूर्तिकार को क्या हुआ?

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Question 228 (5 of 5 Based on Passage)

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मूर्तिकार को आवाज में क्या सुनाई दिया था?

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Passage

शहनाई वालों ने टुन्नू के गीत को बंद बाजे में दोहराया। लोग यह देखकर चकित थे कि बात-बात में तीरकमान हो जाने (हमले की लिए या लड़ने के लिए तैयार रहना) वाली दुलारी आज अपने स्वभाव के प्रतिकूल खड़ी-खड़ी मुसकरा रही थी। कंठ-स्वर की मधुरता में टुन्नू दुलारी से होड़ कर रहा था और दुलारी मुग्ध खड़ी सुन रही थी।

टुन्नू के इस सार्वजनिक आविर्भाव का यह तीसरा या चौथा अवसर था। उसके पिता जी घाट पर बैठकर और कच्चे महाल के दस-पाँच घर यजमानी में सत्यनारायण की कथा से लेकर श्राद्ध और विवाह तक कराकर कठिनाई से गृहस्थी की नौका खे रहे थे। परंतु पुत्र को आवारों की संगति में शायरी का चस्का लगा। उसने भैरोहेला को अपना उस्ताद बनाया और शीघ्र ही सुंदर कजली-रचना करने लगा। वह पद्यात्मक प्रश्नोत्तरी में कुशल था और अपनी इसी विशेषता के बल पर वह बजरडीहा वालों की ओर से बलाया गया था। उसकी ‘शायरी’ पर बजरहीडा वालों ने ‘वाह-वाह’ का शोर मचाकर सिर पर आकाश उठा लिया। खोजवाँ वालों का रंग उतर (शोभा या रौनक घटना) गया। टुन्नू का गीत भी समाप्त हो गया।

Question 229 (1 of 10 Based on Passage)

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लोग क्या देखकर आश्चर्य चकित थे?

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Question 230 (2 of 10 Based on Passage)

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टुन्नू के इस सार्वजनिक आविर्भाव का यह कौनसा अवसर था?

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Question 231 (3 of 10 Based on Passage)

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टुन्नू के पिता जी क्या करते थे?

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Question 232 (4 of 10 Based on Passage)

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टुन्नू को किस बात की संगति का चस्का लगा?

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