CBSE (Central Board of Secondary Education) Class-10 (Term 1 & 2 MCQ) Hindi: Questions 352 - 368 of 2295

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Passage

उसका चणक-चर्वण-पर्व अभी समाप्त न हो पाया था कि किसी ने बाहर बंद दरवाजे की कुंडी खटखटाई। दुलारी ने जल्दी-जल्दी कच्छ खोलकर बाकायदे धोती पहनी, केश समेटकर करीने से बाँध लिए और दरवाजे की खिड़की खोल दी।

बगल में बंडल-सी कोई चीज़ दबाए दरवाजे के बाहर की टुन्नू खड़ा था। उसकी दृष्टि शर्मीली थी और उसके पतले होठों पर झेंप-भरी फीकी मुसकराहट थी। विलोल (चंचल, अस्थिर) आँखे टुन्नू की आँखों से मिलाती हुई दुलारी बोली, “तुम फिर यहाँ, टुन्नू? मैंने तुम्हें यहाँ आने के लिए मना किया था न?”

Question 352 (4 of 7 Based on Passage)

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टुन्नू ने क्या उत्तर दिया?

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Question 353 (5 of 7 Based on Passage)

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बगल सें टुन्नू ने क्या निकाला था?

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Question 354 (6 of 7 Based on Passage)

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बंडल में क्या था?

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Question 355 (7 of 7 Based on Passage)

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ख द्दर की एक साड़ी कहाँं की बनी हुई थी?

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Passage

जीवन की अनंतता का प्रतीक वह झरना … . इन अद्भूत-अनूठे क्षणों में मुसमें जीवन की शक्ति का ऐहसास हो रहा था। इस कदर प्रतीत हुआ कि जैसे मैं स्वयं भी देश और काल की सरहदों (सीमा) से दूर बहती धारा बन बहने लगी हूँ। भीतर ही भीतर सारी तामसिकताएँ (तमोगुण से युक्त, कुटिल) और दुष्ट वासनाएँ (बुरी इच्छाएँ) इस निर्मल धारा में बह गईं। मन हुआ कि अनंत समय तक ऐसी ही बहती रही सुनती रहूँ … . सुनती रहूँ इस झरने की पुकार को। पर जितेन मुझे ठेलने लगा … आगे इससे भी सुंदर नज़ारे मिलेंगे।

अनमनी-सी मैं उठी। थोड़ी देर बाद फिर वही नज़ारे-आँखों और आत्मा को सुख देने वाले। कहीं चटक हरे रंग का मोटा कालीन ओढ़े तो कहीं हलका पीलापन लिए, तो कहीं पलस्तर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला और देखते ही देखते परिदृश्य से सब छू-मंतर … . जैसे किसी ने जादू की छड़ी घूमा दी हो। सब पर बादलों की एक मोटी चादर। सब कुछ बादलमय।

Question 356 (1 of 2 Based on Passage)

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झरने को छू कर लेखिका को क्या ऐहसास हो रहा था?

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Question 357 (2 of 2 Based on Passage)

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लेखिका को सब कुछ जादू सा क्या लग रहा था?

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Passage

हम सभी सैलानी अब जीप से उतर कर बर्फ़ पर कूदने लगे थे। यहाँ बर्फ़ सर्वाधिक थी। घुटनों तक नरम-नरम बर्फ़। ऊपर आसमान और बर्फ़ से ढके पहाड़ एक हो रहे थे। कई सैलानी बर्फ़ पर लेटकर हर लम्हे की रंगत को कैमरे में कैद करने लगे थे।

मेरे पाँव झन-झान करने लगे थे। पर मन वृंदावन हो रहा था। भीतर जैसे देवता जाग गए थे। ख्वाहिश हुई कि मैं भी बर्फ़ पर लेटकर इस बर्फ़ीली जन्नत को जी भर देखूँ। पर मेरे पास बर्फ़ पर पहनने वाले लंबे-लंबे जूते नहीं थे। मैंने चाहा कि किराए पर ले लूँ पर कटाओ, यूमथांग और झांगू लेक की तरह टूरिस्ट स्पॉट (भ्रमण -स्थल) नहीं था, इस कारण यहाँ झांगू की तरह दुनिया भर की क्या एक भी दुकान नहीं थी। खैर … .

Question 358 (1 of 3 Based on Passage)

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सैलानी बर्फ़ पर क्या कर रहे थे?

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Question 359 (2 of 3 Based on Passage)

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ऐसे दृश्य देखकर लेखिका का मन क्या करने को हो रहा था?

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Question 360 (3 of 3 Based on Passage)

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लेखिका की बर्फ़ में न जाने की परेशानी क्या थी?

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Passage

उम्मीद, आवेश, उत्तेजना के साथ अब हमारा सफ़र कटाओ की ओर। कटाओ का रास्ता और खतरनाक था और उस पर धुंध और बारिश। जितेन लगभग अंदाज से गाड़ी चला रहा था। पहाड़, पेड़, आकाश, घाटियाँ सब पर बादलों की परत। सब कुछ बादलमय। बादल को चीरकर निकलती हमारी जीप। खतरनाक रास्तों के अहसास ने हमें मौन कर दिया था। और उस बारिश। एक चूक और सब खलास … . साँस रोके हम धुंध और फिसलन भरे रास्ते पर सँभल-सँभलकर आगे बढ़ती जीप को देख रहे थे। हमारी साँस लेने की आवाजों के सिवाय आस-पास जीवन का कोई पता नही ंथा। फिर नज़र पड़ी बड़े-बड़े शब्दों में लिखी एक चेतावनी पर … . ‘इफ यू आर मैरिड, डाइवोर्स स्पीड’ । थोड़ी ही दूर आगे बढ़े कि फिर एक चेतावनी- ‘दुर्घटना से देर भली, सावधानी से मौत टली’ ।

Question 361 (1 of 3 Based on Passage)

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कटाओं का सफर कैसे शुरू हुआ?

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Question 362 (2 of 3 Based on Passage)

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कटाओं का रास्ता कैसा था?

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Question 363 (3 of 3 Based on Passage)

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फिर आगे कौनसी चेतावनी लिखी हुई थी?

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Passage

और देखते-देखते रास्ते वीरान, सँकरे और जलेबी की तरह घूमावदार होने लगे थे। हिमालय बड़ा होते-होते विशालकाय होने लगा। घटाएँ गहराती-गहराती पाताल नापने लगीं। वादियाँ चौड़ी होने लगीं। बीच-बीच में करिश्मे की तरह रंग-बिरंगे फूल शिद्दत (तीव्रता, प्रबलता, अधिकता) से मुसकराने लगे। उन भीमकाय पर्वतों के बीच और घाटियों के ऊपर बने संकरे कच्चे-पक्के रास्तों से गुज़रते यूँ लग रहा था जैसे हम किसी सघन हरियाली वाली गुफा के बीच हिचकोले खाते निकल रहे हों।

Question 364 (1 of 4 Based on Passage)

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देखते ही देखते रास्ते कैसे होने लगे थेे?

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Question 365 (2 of 4 Based on Passage)

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घटाएँ क्या नापने लगी?

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Question 366 (3 of 4 Based on Passage)

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रंग-बिरंगे फूल क्या करने लगे?

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Question 367 (4 of 4 Based on Passage)

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भीमकाय पर्वतों व घाटियों के बीच कैसा लग रहा था?

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Passage

महाराष्टीय महिलाओं की तरह धोती लपेट, कच्छ बाँधे दुलारी दनादन दंड लगाती जा रही थी। उसके शरीर से टपक-टपककर गिरी बूँदों से भूमि पर पसीने का पुतला बन गया था। कसरत समाप्त करके उसने चारखाने के अँगोछे से अपना बदन पोंछा, बँधा हुआ जूड़ा खोलकर सिर का पसीना सुखाया और तत्पश्चात आदमकद आईने के सामने खड़ी होकर पहलवानों की तरह गर्व से अपने भुजदंडो पर मुग्ध दृष्टि फेरते हुए प्याज के टुकड़े और हरी मिर्च के साथ कटोरी में भिगोए हुए चने चबाने आरंभ किए।

Question 368 (1 of 4 Based on Passage)

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दनादन दंड कौन लगा रही थी?

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