CBSE (Central Board of Secondary Education) Class-10 (Term 1 & 2 MCQ) Hindi: Questions 173 - 189 of 2295
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Passage
इसी पर एक बार बुढ़े वर ने हम लोगों को बड़ी दूर तक खदेड़कर ढेलों से मारा था। उस खसूट-खब्बीस की सूरत आज तक हमें याद है। न जाने किस ससुर ने वैसा जमाई ढूँढ़ निकाला था। वैसा घोड़ मुँहा आदमी हमने कभी नहीं देखा।
आम की फसल में कभी-कभी खूब आँधी आती है। आँधी के कुछ दूर निकल जाने पर हम लोग बाग की ओर दौड़ पड़ते थे। वहाँ चुन-चुनकर घुले-घुले ‘गोपी’ आम चाबते थे।
एक दिन की बात है, आँधी आई पट पड़ गया। आकाश काले बादलों से ढक गया। मेघ गरजने लगे। बिजली कौंधने और ठंडी हवा सनसनाने लगी। पेड़ झूमने और ज़मीन चूमने लगे। हम लोग चिल्ला उठे-
एक पइसा की लाई, बाजार में छितराई, बरखा उधरे बिलाई।
Question 173 (4 of 4 Based on Passage)
Passage
इन खबरों से हिंदुस्तान में सनसनी फेल रही थी। राजधानी में तहलका मचा हुआ था। जो रानी पाँच हजार रुपए का रेशमी सूट पहनकर पालम के हवाई अड्डे पर उतरेगी, उसके लिए कुछ तो होना ही चाहिए। कुछ क्या, बहुत कुछ होना चाहिए। जिसके बावरची पहले पर महायुद्ध में जान हथेली पर लेकर लड़ चुके हैं, उसकी शान-शौकत के क्या कहने, और वही रानी दिल्ली आ रही है … नयी दिल्ली ने अपनी तरफ़ देखा और बेसाख्ता (स्वाभाविक रूप से) मुँह से निकल गया, “वह आए हमारे घर, खुदा की रहमत … . कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं!”
Question 174 (1 of 5 Based on Passage)
Question 175 (2 of 5 Based on Passage)
Question 176 (3 of 5 Based on Passage)
Question 177 (4 of 5 Based on Passage)
Question 178 (5 of 5 Based on Passage)
Passage
हम एक सुर से दौड़े हुए आए और घर में घुस गए। उस समय बाबू जी बैठक के ओसारे (बरामदा) में बैठकर हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उन्होंने हमें बहुत पुकारा पर उनकी अनसुनी करके हम दौड़ते हुए मइयाँ के पास चले गए। जाकर उसी की गोद में शरण ली।
Question 179 (1 of 1 Based on Passage)
Passage
और वह रहस्यमयी सितारों भरी रात मुझमें सम्मोहन जगा रही थी, कुछ इस कदर कि उन जादू भरे क्षणों में मेरा सब कुछ स्थगित था, अर्थहीन था … मैं, मेरी चेतना, मेरा आस-पास। मेेरे भीतर-बाहर सिर्फ़ शून्य ही था और थी अतींद्रियता (इन्द्रियों से परे) में डूबी रोशनी की वह जादुई झालर।
धीरे-धीरे एक उजास (प्रकाश, उजाला) उस शून्य से फूटने लगा … एक प्रार्थना होंठों को छूने लगी … . साना-साना हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कौसेली अर्थात (छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो) । आज सुबह की प्रार्थना के ये बोल मैंने एक नेपाली युवती से सीखे थे।
Question 180 (1 of 5 Based on Passage)
Question 181 (2 of 5 Based on Passage)
Question 182 (3 of 5 Based on Passage)
Question 183 (4 of 5 Based on Passage)
Question 184 (5 of 5 Based on Passage)
Passage
खतरा अब धीरे-धीरे बढ़ने लगा था। रास्ते और भी सँकरे होते जा रहे थे। कई बार लगता जैसे रास्तों को इंच टेप से नापकर एक जीप जितना ही चौड़ा बनाया गया है कि ज़रा भी संतुलन बिगड़े, इंच भर भी जीप इधर-उधर खिसके तो हम सीधे घाटियों में! इन रास्तों पर जगह-जगह लिखी चेतावनियाँ भी हमें खतरों के प्रति सजग कर रही थींं सामने ही लिखा था- ′ धीरे चलाएँ, घर में बच्चे आपका इंतज़ार कर रहे हैं।
थोड़ और आगे बढ़े कि फिर एक चेतावनी- ‘वी केयर, मैन इटर अराउंड।’ पर हमें नरभक्षी वाले जानवर नहीं, दूध देने वाले याक दिखे जो काले-काले ढेर सारे याक थे। पहाड़ों पर गिरती बर्फ़ से प्राकृतिक ढंग से रक्षा करने वाले घने-घने बालों वाले याक।
Question 185 (1 of 3 Based on Passage)
Question 186 (2 of 3 Based on Passage)
Question 187 (3 of 3 Based on Passage)
Passage
पास ही में कंपनी बाग के फूलों की खुशबू से वायुमंडल आमोदित हो उठा था। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था जिसे भेदकर दुलारी की स्वरलहरी गूँज उठी-
‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासों मैं पूछूँ?’
बूट की ठोकर खाकर दोपहर को टुन्नू जिस स्थान पर गिरा था उसी स्थल पर दुष्टि जमाए हुए दुलारी ने दोहराया, ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा’ और फिर चारों ओर उद्भांत (भ्रमित चित्त, हैरान) दृष्टि घुमाते हुए उसने गाया- ‘कासों मैं पूछूँ?’ उसके अधर-प्रांत पर स्मित की एक क्षीण रेखा-सी खिंची। उसने गीत का दूसरा चरण गाया- ‘सास से पूछूँ, ननदिया से पूछूँ, देवरा से पूछत लजानी हो रामा?’